जीएसटी 2.0 कर संरचना में बड़ा बदलाव, ज़रूरी सामान होंगे सस्ते

जीएसटी 2.0 कर संरचना में बड़ा बदलाव, ज़रूरी सामान होंगे सस्ते

भारत में वस्तु एवं सेवा कर जी ,ऐस, टी लागू होने के आठ साल बाद सरकार अब इसे एक नए रूप में पेश करने जा रही है। जीएसटी 2.0 नामक इस सुधार के तहत टैक्स स्लैब को सरल बनाया जाएगा और आम जनता को राहत देने के लिए कई ज़रूरी सामानों पर कर घटाया जाएगा।
वर्तमान में जीएसटी की पाँच दरें हैं—0%, 5%, 12%, 18% और 28%। इसके अलावा लक्ज़री और “सिन गुड्स” (तंबाकू, शराब, महँगी गाड़ियाँ आदि) पर अलग से सेस लगाया जाता है।
नई व्यवस्था में इसे बदलकर तीन श्रेणियाँ करने का प्रस्ताव है:
5% – ज़रूरी और कम कीमत वाले सामान
18% – सामान्य वस्तुएँ और सेवाएँ
40% – लक्ज़री और सिन गुड्स (सेस की जगह सीधा टैक्स)
इससे व्यवस्था सरल होगी और उपभोक्ताओं को सीधे कम कीमत का लाभ मिलेगा।
किन चीज़ों पर होगा असर

दवाइयाँ और स्वास्थ्य सेवाएँ: कई ज़रूरी दवाएँ, जिनमें कैंसर और गंभीर बीमारियों की दवाएँ शामिल हैं, 12% से घटाकर 5% या शून्य कर पर लाई जा सकती हैं। ऑक्सीजन, सर्जिकल ग्लव्स और मेडिकल किट भी सस्ते हो सकते हैं।

रोज़मर्रा की ज़रूरतें: स्टेशनरी, वस्त्र, हस्तशिल्प और शिक्षा से जुड़े सामान, खासकर ₹2500 से कम कीमत वाले, अब 5% टैक्स पर मिल सकते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक्स और उपकरण: टीवी, वॉशिंग मशीन, फ्रिज और एसी जैसे सामान, जो अभी 28% जीएसटी में आते हैं, अब 18% पर आ सकते हैं। अनुमान है कि इनकी कीमत लगभग 7–8% तक घटेगी।
गाड़ियाँ और टू-व्हीलर: छोटी कारें और बाइक, जिन पर अभी 28% टैक्स और अतिरिक्त सेस लगता है, इन्हें भी 18% श्रेणी में लाया जा सकता है। इससे वाहन की कीमतें घटेंगी और बिक्री बढ़ने की उम्मीद है।
बीमा प्रीमियम: स्वास्थ्य और जीवन बीमा पर वर्तमान 18% जीएसटी घटाकर 5% या शून्य किया जा सकता है। इससे बीमा लेना सस्ता होगा।
40% का लक्ज़री स्लैब
दूसरी ओर, महँगी गाड़ियाँ, लक्ज़री सामान और तंबाकू जैसे सिन गुड्स पर सीधा 40% जीएसटी लगाया जाएगा। यह व्यवस्था सेस को खत्म कर टैक्स सिस्टम को सरल बनाएगी, हालांकि इन वस्तुओं की कीमतें स्थिर या अधिक हो सकती हैं।
आर्थिक असर

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जीएसटी 2.0 देश की अर्थव्यवस्था को नई रफ़्तार देगा।
एसबीआई रिसर्च का अनुमान है कि उपभोग खर्च में ₹5.3 लाख करोड़ की बढ़ोतरी होगी, जिससे जीडीपी में लगभग 1.6% का योगदान होगा।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुताबिक़, कम स्लैब होने से कारोबारियों को टैक्स अनुपालन आसान होगा और लागत भी घटेगी।
राज्यों की चिंता

हालाँकि यह सुधार उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद है, लेकिन राज्य सरकारें इसे लेकर चिंतित हैं। जीएसटी दरों में कटौती से राज्यों की आय में हर साल ₹1.5 से 2 लाख करोड़ की कमी हो सकती है। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों ने इस पर आपत्ति जताई है और केंद्र से राजस्व घाटे की भरपाई की माँग की है।
आगे का रास्ता,,,,
सरकार चाहती है कि यह नई व्यवस्था अक्टूबर 2025 से लागू हो, ताकि दिवाली से पहले उपभोक्ताओं को सस्ती दवाइयाँ, उपकरण और गाड़ियाँ मिल सकें। लेकिन इसका अंतिम फैसला आने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्यों की सहमति पर निर्भर करेगा।
निष्कर्ष—–
जीएसटी 2.0 भारत के कर ढाँचे को सरल और उपभोक्ता-हितैषी बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। यह आम जनता के लिए राहत, उद्योगों के लिए बढ़ावा और अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा का काम कर सकता है। लेकिन राज्य सरकारों की चिंताओं का समाधान किए बिना इस सुधार का सफल होना मुश्किल होगा। आने वाले हफ़्तों में होने वाला जीएसटी काउंसिल का निर्णय देश की कर व्यवस्था के भविष्य की दिशा तय करेगा।

रिपोर्टर: राजेश कुमार

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